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मिथ्यचारी इन्द्रियानार्थान्विमू ढ ात्मा मिथ्याचार : यावानर्थ उदपाने सर्वत : सम्प्लुतोदके | तवंसर्वे षु वेदे षु ब्रह्मं ण स्य विजानत : || गुनातीत मनुष्य ु ु ु वेदे षु ब्रह्मं ण स्य विजानत : षु ण ह

आप भी

अपने जज्बात में नाग्मात रचाने के लिए मैंने धड़कन कि तरह दिल में बसाया है तुझे | मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूं ; मैंने किस्मत कि लकीरों से चुराया है तुझे |