मार्च 04, 2008 मिथ्यचारी इन्द्रियानार्थान्विमू ढ ात्मा मिथ्याचार : यावानर्थ उदपाने सर्वत : सम्प्लुतोदके | तवंसर्वे षु वेदे षु ब्रह्मं ण स्य विजानत : || गुनातीत मनुष्य ु ु ु वेदे षु ब्रह्मं ण स्य विजानत : षु ण ह और पढ़ें
फ़रवरी 08, 2008 ओह रे , ताल मिलें नदी के जल में नदी मिलें सागर में सागर मिलें कौन से जल में कोई जाने ना | और पढ़ें
फ़रवरी 03, 2008 एक वैदिक लौकिक उपासीत संकल्प निर्विकल्प उपासना अर्थना प्रार्थना उप आसन उपेक्शा और पढ़ें
आप भी जनवरी 26, 2008 अपने जज्बात में नाग्मात रचाने के लिए मैंने धड़कन कि तरह दिल में बसाया है तुझे | मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूं ; मैंने किस्मत कि लकीरों से चुराया है तुझे | और पढ़ें