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मिथ्यचारी
इन्द्रियानार्थान्विमूात्मा मिथ्याचार:

यावानर्थ उदपाने सर्वत: सम्प्लुतोदके |
तवंसर्वेषु वेदेषु ब्रह्मंस्य विजानत: ||

गुनातीत

मनुष्य

वेदेषु ब्रह्मंस्य विजानत:
षु

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क्या कमाल था कि देख आइना सिहर उठा , इस तरफ़ ज़मीन और आस्मां उधर उठा , थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा , वो उठी लहर कि ढह गये किले बिखरबिखर नैन