मार्च 04, 2008 मिथ्यचारी इन्द्रियानार्थान्विमू ढ ात्मा मिथ्याचार : यावानर्थ उदपाने सर्वत : सम्प्लुतोदके | तवंसर्वे षु वेदे षु ब्रह्मं ण स्य विजानत : || गुनातीत मनुष्य ु ु ु वेदे षु ब्रह्मं ण स्य विजानत : षु ण ह और पढ़ें